बुधवार, 16 जनवरी 2013

सुबह होती है शाम होती है


सुबह होती है शाम होती है 

उम्र यूँ हि तमाम होती है 

अपनी पहचान बनाने की खातिर  

मंजिल की तलाश हर बार होती है 

कुछ ख्वाब सच होते है कुछ बिखरते है

जो सच होते है वो हकीकत बन जाते है 

जो सच नहीं होते वो यादों में सिमट जाते है 

कभी बीते हुए हसीं दिन याद आते है

तो कभी आने वाले सुखद पल की बात होती है 

शायद इन्ही उम्मीदों पे जिन्दगी टिकी होती है

सुबह होती है शाम होती है उम्र यूँ हि तमाम होती हैं 

रविवार, 16 सितंबर 2012

दीदी- मेरी प्यारी बहना

दीदी तू सबसे प्यारी है

मम्मी पापा की लाडली है

मुझे बचपन से हि संभाला है तुने

जीने के सलीके को सवारां है तुने

पापा की डांट-फटकार से हमेशा बचायी है तुने

मेरी हरेक गलतियों से रूबरू करायी है तुने

माँ के प्रयास एवं तुझे देखकर चलना, बोलना और पढना सिखा

तेरी अथक कोशिश और समर्पण से मै जीवन में आगे बढ़ा

बचपन का वो दिन बड़ा सुहाना था जब हम साथ रहा करते थे

आपस में कभी-कभी लड़ना-झगरना भी होता था

फिर मुझे तुम समझाती एवं मना लेती थी

मेरी ख़ुशी की खातिर अपने हिस्से की भी चीज़े मुझे दे देती हो

मेरी हर पसंद- नापसंद का ख्याल तुम रखती हो

मेरी हर तरक्की पर दौड़ मंदिर में घंटा बजाती हो

मेरे दुखो से तुम दुखी हो जाती हो

जीवन में आगे बढ़ने के लिए हरदम हौसला बढाती हो

मै जितना भी लिखूं दीदी तुम्हारे बारे में शब्द कम पड़ जायेंगे

सर्वोपरी है दीदी तू, मेरे लिए भगवान-स्वरुप है !!

बुधवार, 22 अगस्त 2012

ये शहर है कैसा ??

ये शहर है कैसा शर्मा, जिसमे तू अपना किस्मत तराशने आया है ! 
यहाँ तो देखी है मैंने पत्थरो का हुकुमुत और तू फूलो सा इरादा मन में संजोया है !
इस मतलबपरस्त जहां में मतलब के है लोग और तू गाँव सा दिल लेकर आया है ! 

यहाँ तो पग पग पे दुश्मन मिलेंगे तुम्हे और तू यारो की यारी निभा कर आया है ! 
चलते चलते हजारों दोस्त बन जायेंगे यहाँ पर बचपन वाली पक्की दोस्ती तू कहाँ से लायेगा ?
खुदगर्ज है इन्सान यहाँ के, तू त्याग और निस्वार्थ कि भावना कहा से लायेगा ? 

फिर भी तुम्हे जीना है यहां… 
तो हो जाओ तैयार शर्मा इस शहरी जिन्दगी जीने को, लगा एक तेज दौर इस रेस को जितने को !! 

(दिल्ली महानगर की ये भाग-दौर भरी शहरी जिन्दगी को मैंने अपने टूटे-फूटे शब्दों में लिखा हैं...)

बुधवार, 25 जुलाई 2012

ख्याल मेरे स्वभाव पे

मेरे कुछ नए दोस्तों का ये शिकवा रहता है कि, हम बहुत कम बोलते है| वो सोचते है शरमाता बहुत है कुन्दन या बात करने नहीं आती होगी!! लेकिन मै उन्हें ये बताना चाहता हूँ कि, शांत रहना हमेशा बेहतर होता है ज्यादा बोलने वालो से!! ईश्वर ने हमे दो कान तो दिए है पर जीभ एक ही दी हैं जो इस बात का संकेत करता है कि हम सुने अधिक और बोले कम| वैसे कम बोलना मेरी आदत है और यह आदत मैंने विकसित की है कभी एक समय था जब मै बहुत बोला करता था जिस पर मैंने सप्रयास नियंत्रण पा लिया है क्यूंकि, मैं जनता हूँ की कम बोलने के लाख लाभ होते है और मै हमेशा प्रयास करता हूँ की कम बोलू लेकिन सार्थक बोलू और निति में कहाँ भी गया है मौन रहना विद्वानों का आभूषण होता है; और कम बोलना मेरे व्यक्तित्व को शोभा भी देती है...:)

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

बारिश तुम चली आओ

सावन के महीने है आ गये कि तुम चली आओ
अरमान है प्यासे धरती के तुम चली आओ
सवारने लोगो की जिन्दगी को तुम चली आओ
छाई है निराशा सब पे कि तुम चली आओ
उदास है जग वाले कि तुम चली आओ
छम छम मोर नाचेंगे कि तुम चली आओ
कोयल गुनगुनायेगी कि तुम चली आओ
पपीहा प्यास बुझाएगा कि तुम चली आओ
सराबोर होंगे किसान कि तुम चली आओ
लहलहाएंगे अपने खेत कि तुम चली आओ
बड़ी शिद्दत से है तुम्हारा इंतज़ार कि तुम चली आओ
इस जीवन का अस्तित्व के लिए तुम चली आओ
बारिश, तुम चली आओ !!
Kundan

बुधवार, 13 जून 2012

एक नयी मंजिल की ओर


चल पड़े हैं  एक नयी मंजिल की ओर
उम्मीदों  का  संबल लिए  विश्वास  की  शक्ति के साथ
कोशिशों  के  सफ़र पर खुद को माझी  बनाकर
ये हम जानते है कि चुनौतिया बहुत आएगी
लेकिन मन ही मन तसल्ली देता खुद से कहता
हाँ मैं कर लूँगा  इन चुनौतियों का सामना
आखिर अपनी भी तो पहचान बनानी हैं !!


( Working with CSS Infosystem on 11 June 2012.)

रविवार, 20 मई 2012

घर से आइल बा बुलावा शिवम् के जनेऊ बा


घरे से आइल बाटे बुलावा, शिवम के जनेऊ बा
पांच दिन के छुट्टी दे दीं हुजूर, घर में इंतजार बा
ना सावन में घरे गइनी ना भादो में घरे गइनी
दो साल से होली दिवाली हम जनबे ना कइनी
आपन सिरौना गँउवा देखे खातिर, कब से जियरा बेकरार बा 
पांच दिन के छुट्टी दे दीं हुजूर, घर में इंतजार बा
माँ बोलावे बबुवा अइब कहिया पापा कब से देखेलन रहिया
जायेम जब घरे त बहिन हमरा के देख के बड़ा खुश होई
बड़का बाबा देख के बड़ा पुलकित होइहन
गाँव के दोस्त सब कहेला कि हमारा के भुला देले का
पैसा कमाए के खातिर गाँव बिसरा देले का
बउवा के जनेऊ के शुभ मौका पे सब लोग से मिल आयेम
नया उत्साह, नया मंजिल पावे के चाह हम ले आयेम
करतानी रउवा से इहे हम  निहोरा अर्जी हमार बा मर्जी राउर बा
अगर न देहम रउवा छुट्टी त छोड़ के जायेम हम राउर नौकरी
इहे  हमार  विचार बा पांच दिन के छुटी दे दी हुजुर सबका हमार इंतजार बा...


( मेरे भाई शिवम् के जनेऊ (यज्ञोपवीत उपनयन संस्कार ) के शुभ अवसर पे घर से बुलावा आया है और मुझे घर जाना है ये पंक्तिया उसी के लिए है !! )